सनातन धर्म में भगवान शिव को त्रिलोक के स्वामी, काल के भी काल यानी महाकाल के रूप में पूजा जाता है। उन्हीं का एक अत्यंत भयमुक्त और चमत्कारी रूप है – भूतनाथ। “भूतनाथ” का शाब्दिक अर्थ है: भूतों के स्वामी, अर्थात जो समस्त प्रेत-योनि, पिशाच, राक्षस तथा तामसिक शक्तियों पर नियंत्रण रखते हैं। उन्हीं की स्तुति में रचित भूतनाथ अष्टकम् एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जो भय, तंत्र बाधा, दुर्भाग्य, अकाल मृत्यु और मानसिक संकट से रक्षा करता है।
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भूतनाथ कौन हैं?
“भूतनाथ” भगवान शिव का एक उग्र, रक्षक और रहस्यमय रूप है, जो विशेष रूप से काशी (वाराणसी) में मणिकर्णिका घाट पर प्रतिष्ठित है। श्मशान में वास करने वाले इस रूप की आराधना से मृत्यु का भय समाप्त होता है, पितृदोष का नाश होता है और शत्रु भय से भागते हैं।
भूतनाथ अष्टकम् क्या है?
“अष्टकम्” का अर्थ है आठ पदों या श्लोकों से युक्त स्तोत्र। भूतनाथ अष्टक में आठ ऐसे श्लोक हैं, जो भगवान शिव के भूतनाथ स्वरूप की स्तुति करते हैं। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक रूप से शक्तिशाली है, बल्कि साधकों को चमत्कारी रूप से संकटों से उबारता है।
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भूतनाथ अष्टक के पाठ की विधि
पात्रता: स्तोत्र को कोई भी भक्त श्रद्धापूर्वक पढ़ सकता है।
स्थान: श्मशान, शिवमंदिर या घर के पूजा स्थान में।
काल: अमावस्या, शनिवार, सोमवार या कालाष्टमी को विशेष फलदायक।
वस्त्र: स्वच्छ वस्त्र पहनें, रुद्राक्ष माला या त्रिपुंड तिलक धारण करें।
पाठ विधि:
शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, भस्म अर्पण करें।
दीप जलाकर, ध्यान लगाकर 1, 3 या 11 बार स्तोत्र का पाठ करें।
पाठ के अंत में “ॐ नमः शिवाय” या “ॐ भूतनाथाय नमः” का जप करें।
भूतनाथ अष्टक के लाभ
भूतनाथ अष्टक भगवान शिव के उग्र और रक्षक स्वरूप की स्तुति है, जिसका पाठ तंत्र-मंत्र, भूत-प्रेत बाधा और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा करता है। यह स्तोत्र शत्रु नाश, भय से मुक्ति, मानसिक शांति और आत्मबल की प्राप्ति में सहायक है। इसके नियमित पाठ से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है तथा जीवन में स्थिरता आती है। अमावस्या, कालाष्टमी या रात्रिकाल में इसका जाप विशेष फलदायक होता है। भूतनाथ अष्टक साधक को अदृश्य शक्ति का कवच प्रदान करता है और मोक्ष मार्ग को सरल बनाता है। यह स्तोत्र आत्मरक्षा व साधना दोनों में प्रभावी है।
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लाभ | विवरण |
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1. तंत्र-मंत्र से रक्षा | तांत्रिक बाधाओं, नजर दोष, काला जादू से रक्षा करता है। |
2. शत्रु बाधा नाश | शत्रुओं के दुष्कर्म निष्फल होते हैं। |
3. मानसिक शक्ति | भय, अवसाद, चिंता, भ्रम आदि दूर होते हैं। |
4. पितृदोष शांति | पितृशांति के लिए अत्यंत प्रभावी स्तोत्र। |
5. अकाल मृत्यु से रक्षा | दुर्घटना, मृत्यु भय से रक्षा करता है। |
6. मोक्ष प्राप्ति | अंततः आत्मा को शांति और मुक्ति प्राप्त होती है। |
भूतनाथ अष्टक से जुड़ी पौराणिक कथा
वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर शिव स्वयं ‘भूतनाथ’ रूप में विराजते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति यहाँ अंतिम सांस लेता है, स्वयं भूतनाथ उसके कान में तारक मंत्र (ॐ नमः शिवाय) का उच्चारण करते हैं जिससे उसे मोक्ष प्राप्त होता है। यह अष्टक, इसी सिद्धपीठ के ध्यानस्वरूप रचा गया है।
भूतनाथ अष्टक का मूल संस्कृत पाठ
भूतनाथ अष्टक आठ श्लोकों का एक प्रभावशाली स्तोत्र है, जो भगवान शिव के भयानक रूप की स्तुति करता है। इसमें शिव के श्मशानवासी, त्रिनेत्रधारी, भूतों के स्वामी, नीलकंठ और काल के भी काल स्वरूप का वर्णन है। इसका पाठ तांत्रिक प्रभावों से रक्षा करता है।
शिवाय शान्तरूपाय भूतनाथाय ते नमः।
कालकालाय सर्वेशं मृत्युं जयन्तमव्ययम्॥१॥
त्रिपुरान्तक रूपाय भूतसंघनिपातिने।
भीषणाय महाघोरं चण्डेषं प्रणम्यहम्॥२॥
श्मशानवासी नीलकण्ठं भस्माङ्गरागभूषणम्।
विभूतिधारिणं देवं भूतनाथं नमाम्यहम्॥३॥
गजचर्माम्बरधरं कृत्तिवासं महेश्वरम्।
सर्वभूताधिपं रौद्रं कालेशं प्रणम्यहम्॥४॥
नमस्ते शूलहस्ताय मृत्युभीतिहराय च।
भूतनाथाय भीमाय नीलग्रीवाय ते नमः॥५॥
कपालमालिकारूढं खट्वाङ्गधृतकुण्डलीम्।
भैरवरूपिणं रौद्रं भूतनाथं नमोऽस्तुते॥६॥
त्रिनेत्रं पिङ्गलाक्षं च रौद्राननं महाव्रतम्।
सर्वभूतमयं शम्भुं नमामि भूतनायकम्॥७॥
भूतनाथाष्टकं पुण्यं यः पठेच्छिवसंनिधौ।
**स सर्वं दुःखमुत्सृज्य मोक्षमायाति शाश्वतम्॥८॥
भूतनाथ अष्टक प्रत्येक श्लोक का अर्थ
१। “शिवाय शान्तरूपाय…” भगवान शिव जो शांतस्वरूप, मृत्यु को जीतने वाले और अविनाशी हैं – उन्हें मेरा नमस्कार।
२। “त्रिपुरान्तक रूपाय…” जो त्रिपुरासुर का संहार कर चुके हैं, राक्षसी शक्तियों का विनाश करते हैं – उन्हें प्रणाम।
३। “श्मशानवासी नीलकण्ठं…” जो श्मशान में निवास करते हैं, नीलकंठ हैं और भस्म से सुशोभित हैं – ऐसे भूतनाथ को प्रणाम।
४। “गजचर्माम्बरधरं…” जो गजचर्म धारण करते हैं, रौद्र हैं और महेश्वर हैं – उन भूतनाथ को मेरा नमस्कार।
५। “नमस्ते शूलहस्ताय…” त्रिशूलधारी, मृत्यु के भय का नाश करने वाले और नीलग्रीव भगवान को नमस्कार।
६। “कपालमालिकारूढं…” जो कपालमाला पहनते हैं, खट्वांग धारण करते हैं और भैरवरूप में हैं – उन्हें नमन।
७। “त्रिनेत्रं पिङ्गलाक्षं…” तीन नेत्रों वाले, अग्निलक्षणों से युक्त, सभी भूतों के स्वामी शंभु को मैं प्रणाम करता हूँ।
८। “भूतनाथाष्टकं पुण्यं…” जो इस स्तोत्र को शिवमंदिर में पढ़ता है, वह सभी दुःखों को त्याग कर मोक्ष प्राप्त करता है।
भूतनाथ अष्टक
शिव शिव शक्तिनाथं संहारं शं स्वरूपम्
नव नव नित्यनृत्यं ताण्डवं तं तन्नादम्
घन घन घूर्णिमेघं घंघोरं घंन्निनादम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ||1||
कळकळकाळरूपं कल्लोळंकंकराळम्
डम डम डमनादं डम्बुरुं डंकनादम्
सम सम शक्तग्रिवं सर्वभूतं सुरेशम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ||2||
रम रम रामभक्तं रमेशं रां रारावम्
मम मम मुक्तहस्तं महेशं मं मधुरम्
बम बम ब्रह्मरूपं बामेशं बं विनाशम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ||3||
हर हर हरिप्रियं त्रितापं हं संहारम्
खमखम क्षमाशीळं सपापं खं क्षमणम्
द्दग द्दग ध्यानमूर्त्तिं सगुणं धं धारणम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ||4||
पम पम पापनाशं प्रज्वलं पं प्रकाशम्
गम गम गुह्यतत्त्वं गिरीशं गं गणानाम्
दम दम दानहस्तं धुन्दरं दं दारुणम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ||5||
गम गम गीतनाथं दूर्गमं गं गंतव्यम्
टम टम रूंडमाळं टंकारं टंकनादम्
भम भम भ्रम् भ्रमरं भैरवं क्षेत्रपाळम्
भज भज भस्मलेपं भजामि भूतनाथम् ||6||
त्रिशुळधारी संहारकारी गिरिजानाथम् ईश्वरम्
पार्वतीपति त्वम्मायापति शुभ्रवर्णम्महेश्वरम्
कैळाशनाथ सतीप्राणनाथ महाकालम्कालेश्वरम्
अर्धचंद्रम् शिरकिरीटम्भूतनाथं शिवम्भजे ||7||
नीलकंठाय सत्स्वरूपाय सदा शिवाय नमो नमः
यक्षरूपाय जटाधराय नागदेवाय नमो नमः
इंद्रहाराय त्रिलोचनाय गंगाधराय नमो नमः
अर्धचंद्रम् शिरकिरीटम्भूतनाथं शिवम्भजे ||8||
तव कृपा कृष्णदासः भजति भूतनाथम्
तव कृपा कृष्णदासः स्मरति भूतनाथम्
तव कृपा कृष्णदासः पश्यति भूतनाथम्
तव कृपा कृष्णदासः पिबति भूतनाथम् ||9||
|| अथ श्रीकृष्णदासः विरचित ‘भूतनाथ अष्टकम्’ यः पठति निस्कामभावेन सः शिवलोकं सगच्छति ||
भूतनाथ अष्टक न केवल भगवान शिव के उग्र, रक्षक और तांत्रिक रूप की स्तुति है, बल्कि यह एक अदृश्य कवच है जो साधक को प्रेतबाधा, भय, मृत्यु और मानसिक कष्टों से मुक्त करता है। इसे श्रद्धा, निष्ठा और नियमितता से पढ़ने पर साधक को शक्ति, शांति और मोक्ष – तीनों की प्राप्ति होती है।
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श्री दुर्गा देवी स्तोत्रम | ||
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माँ भुवनेश्वरी स्तोत्र | ||
माँ धूमावती स्तोत्र | ||
भूतनाथ अष्टक |
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FAQs”
क्या स्त्री भी भूतनाथ अष्टक का पाठ कर सकती हैं?
उत्तर: हाँ, श्रद्धा और नियमपूर्वक स्त्री भी इसका पाठ कर सकती हैं।
क्या भूतनाथ अष्टक घर में पढ़ना उचित है?
उत्तर: हाँ, यदि स्थान स्वच्छ हो और नकारात्मकता ना फैले, तो पढ़ा जा सकता है।
. क्या भूतनाथ अष्टक पढ़ने से भूत-प्रेत डरते हैं?
उत्तर: यह स्तोत्र विशेष रूप से प्रेतबाधा से रक्षा करता है। भूत और पिशाच इस ऊर्जा से दूर भागते हैं।
. क्या भूतनाथ अष्टक रात्रिकाल में पढ़ा जा सकता है?
उत्तर: हाँ, यह रात्रिकाल में विशेष फलदायक होता है, विशेषतः कालरात्रि, कालाष्टमी, अमावस्या को।
क्या भूतनाथ अष्टक किसी विशेष संख्या में पढ़ना चाहिए?
उत्तर: 11, 21 या 108 बार जाप कर सकते हैं। नित्य एक बार पाठ से भी लाभ होता है
क्या भूतनाथ अष्टक कोई दुष्प्रभाव है?
उत्तर: नहीं, यह शिव स्तुति है, परन्तु इसे कुत्सित उद्देश्य से न पढ़ें।